Education, Education Policy and How Govt Treating

शिक्षा और सरकार एवं सरकार के किए हुए काम


माना कि प्राइवेट स्कूल ऑनलाइन क्लासेज करवा रहे हैं और जिनके माता-पिता के पास लैपटॉप और मोबाइल है वह पढ़ पा रहे हैं। लेकिन गांव में जो सरकारी स्कूल है उनका क्या वह तो कोई ऑनलाइन क्लासेज भी नहीं चला रहे हैं और उन में पढ़ने वाले बच्चे जो लैपटॉप और मोबाइल से अभी भी दूर है उनकी जिंदगी तो 1 साल के लिए तबाह ही हो जाएगी। मोबाइल और लैपटॉप से अगर कुछ भी सीखा जाता है तो सरकारी स्कूल वालों के लिए तो 1 साल खत्म है और यह 1 साल उनको 10 साल पीछे धकेल सकता है। कोई कहीं पर सरकार बनाने की सोच रहा है तो कोई जैसलमेर जैसे होटलों में बैठकर सरकार बनाने की सोच रहे हैं लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का क्या है। केवल एक उदाहरण के तौर पर राजस्थान सरकार में अशोक गहलोत ने सरकार बचाने के लिए करोड़ों रुपए होटल पर खर्च कर दिए होंगे सारे एमएलए को वहां इकट्ठा करके लेकिन सरकारी स्कूल के बच्चों की पढ़ाई किसने शुरू की जाए क्या उनमें भी ऑनलाइन क्लासेज शुरू की जाए। सरकारी स्कूल के टीचरों की फंडिंग की जाए ताकि वह स्कूल में ऑनलाइन क्लासेज शुरू करे। इनका गहलोत सरकार पर कोई ध्यान नहीं रहा केवल सरकार को बचाने के लिए तैयार है और इसमें कुछ हद तक कामयाब भी रह गए। मात्र जो अपने स्वार्थ के लिए काम करते हैं वह नेता नहीं होते। इसके लिए बहुत सारे बच्चों की मां बाप से गालियां और बद्दुआ ही मिलती है। तो अपने राजनीतिक स्वार्थ छोड़ के जो सरकारी स्कूल है उनकी तरफ भी ध्यान दिया जाए क्योंकि दिसंबर तक कोई स्कूल खुलने वाली नहीं है। और कम से कम देश के भविष्य की तरफ तो ध्यान देना शुरू करो। और बता दो कोई भी नेता देशभक्त नहीं है। यह सारे के सारे बस अपना काम निकालने के लिए आते हैं और देश को लूटने के लिए आते हैं।

खड़े होकर पॉलिसी निकाल देते हैं लेकिन वह पॉलिसी केवल एक कागज का टुकड़ा बन कर रह जाती है। हम नई एजुकेशन पॉलिसी लेकर भले ही आ जाएंगे ताकि लोग आज की एजुकेशन पर सवाल खड़ा ना करें। एजुकेशन पॉलिसी है लोगों के सवाल जो थे उनको बंद कर दिया कि आज बच्चों की एजुकेशन का क्या होगा। सारा जो मीडिया है वह एजुकेशन पॉलिसी को दिखाने लग गया लेकिन यह किसी ने नहीं दिखाया कि आज जो सरकारी स्कूल है उनका क्या एजुकेशन पॉलिसी दो 2022 के बाद लगेगी। तो जब तक देश का नागरिक सरकार की जो पॉलिसियों हैं उनमें अटकने लग जाएगा तो वह देश का भविष्य नहीं सोच पाएगा। सरकार की पॉलिसी काम करने के लिए कम एवं ध्यान भटकाने के लिए ज्यादा होती है। नेशनल एजुकेशन पॉलिसी बाद में भी आ सकती थी लेकिन आज जरूरी था कि सरकारी स्कूल के बच्चों को किस तरह पढ़ाया जाए उनके टीचर्स को किस तरह गाइडलाइन दी जाए उनको किस तरह टेक्निकल इक्विपमेंट्स प्रोवाइड किए जाएं कि वह क्लास ले सके। चुनाव के लिए तो गवर्नमेंट लैपटॉप एंड मोबाइल डिस्ट्रीब्यूटर करती है लेकिन जब रियल में बच्चों को लैपटॉप और मोबाइल की जरूरत है तो यह केवल एजुकेशन पॉलिसी का एक पन्ना पकड़ा देती है। ताकि जो गरीब मां-बाप है वह केवल हम हिंदू हम मुस्लिम करके उनको चुनाव में वोट दे दे। क्योंकि रियल में उनके बच्चे तो पड़ी नहीं पाएंगे वह आगे जाकर यही करेंगे कि हम हिंदू हैं हम मुस्लिम हैं हम पिछड़ी जाति के हम जनजाति के हैं और गवर्नमेंट को अपना वोट बैंक मिल जाएगा। वरना देश को आजाद हुए लगभग 75 साल होने वाले हैं लेकिन देश में अभी तक एजुकेशन उस स्तर तक नहीं पहुंची है। क्योंकि जिस दिन एजुकेशन पहुंच जाएगी उस दिन क्या है कि जो आइडलोजी है वह खत्म हो जाएगी। क्योंकि एक पढ़े-लिखे आदमी को किसी की आइडलोजी पर चलने की जरूरत नहीं है। विचारधारा हमेशा निरंकुशता की तरफ लेकर चलती है। अगर आप किसी की विचारधारा का अनुसरण कर रही हो तो मान लीजिए आप अंधे हो। आप किसी की बात को मान सकते हो लेकिन उसकी विचारधारा को मानना आपके लिए जरूरत नहीं। सही मायने में यही कहा गया है की अगर देश एजुकेटेड हो गया है तो उनको किसी की विचारधारा मांगने की जरूरत नहीं। विचारधारा क्या होती है- विचारधारा यह है कि बहुत सारे लोगों को कुछ चंद लोग अपने स्वार्थ के लिए भड़का कर एक काम करना। उस विचारधारा को राष्ट्रवाद का भी नाम ले लीजिए और कुछ और भी नाम दे दीजिए। क्योंकि जब एक पढ़ा-लिखा लोग हैं वह कभी भी अपने राष्ट्र के विरोध नहीं होता। लेकिन कुछ लोग अनपढ़ लोगों को विचारधारा नाम पर राष्ट्रवाद के नाम पर धर्म के नाम पर भड़का कर अपना केवल स्वार्थ सिद्ध करते हैं। यही कारण है कि भारत में आज तक 75 साल में शिक्षा उस स्तर तक नहीं बढ़ पाई क्योंकि अगर शिक्षा बढ़ जाती तो लोग अपनी सोच समझकर चुनाव में वोट देते और जो यह पार्टी पॉलिटिक्स है वह इस स्तर तक आगे नहीं बढ़ती की कोई भी सरकार पूर्ण बहुमत ले अपनी विचारधारा पर। और फिर ना कहीं ना कहीं देश का असली विकास होता। तो सभी से यही विनती है कि हमें नई एजुकेशन पॉलिसी अभी जरूरत नहीं है अभी सबसे ज्यादा जरूरत है जो गरीब बच्चे हैं उनको एजुकेशन प्रोवाइड की जाए और जो आप लैपटॉप और मोबाइल चुनाव के समय डिस्ट्रीब्यूटर करते थे वह अभी उनको प्रोवाइड किया जाए ताकि वह पढ़ाई कर सकें।

संदीप चौधरी
जय हिंद जय भारत

Post a Comment